आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P.
एक माँ ने
सड़क पर बच्चा जना है
कुछ लोग इस पर करेंगे सियासत….
कुछ लोग होंगे इतने निष्ठुर
कि कह पड़ेंगे
कि क्या जरूरत थी सड़क पर चलने की…
बहुत जरूरी है
पीड़ित को महसूसना
उतारकर पूर्वाग्रह के चोले….
आपका समर्थन तंत्र हेतु
ऐसा भी न हो कि
न गिना सकें कमियां……
वहीं विरोध भी ऐसा न हो
कि नजर न आये अच्छाइयां…
हर घटनाओं में शामिल होते हैं
कुछ स्वार्थी लोग
लेकिन भुगतते हैं निस्वार्थ लोग…..
पीड़ा तब बढ़ जाती है
जब तीसरा तबका
अपने विचारों के चरस हेतु
माध्यम बनाता हैं घटनाओं को……
स्वस्थ विश्लेषण
उतना ही जरूरी है
जितना जरूरी है
मछली के लिये साफ पानी……
अन्यथा मौन रहना ही बेहतर है
क्योंकि हमारे विश्लेषण का प्रभाव
उस सड़क पर जन्में बच्चे को
दे सकता है हथियार
या थमा सकता है फूल……
वह चुन सकता है कलम
या उसे चुन लें गलतफहमिया
कुछ भी संभव है …….
इसीलिये विश्लेषण के पहले
जरूरी है चश्मा साफ कर लेना
जरूरी है रेचित होना
कभी कभी जरूरी है भावों से भर जाना
और कभी कभी यह भी जरूरी है
भावों से उबर जाना…….
भावों को हिडोले मारने देना
धीर की धरती पा लेने तक
अधीर करते भाव
धैर्य का पर्याय हो ही नहीं सकते।
#आकृति विज्ञा “अर्पण”